Swati Sharma

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वार्षिक लेखन प्रतियोगिता कहानी -1:- लघुकथा:- रणछोड़ दास

वार्षिक लेखन प्रतियोगिता कहानी:- 1:- लघुकथा - रण छोड़

               "अरे ! तू अभी तक सो रहा है। चल उठ जल्दी से तैयार हो जा। आज तेरा इंटरव्यू है ना! मैंने तेरी पसंद का नाश्ता बनाया है। जल्दी से नहा- धोकर आ जा।" मां ने बड़े स्नेह से अपने सुपुत्र को जगाया। उसने चादर के अन्दर से ही जवाब दिया-"बस मां मैं नहीं जा रहा किसी इंटरव्यू के लिए। कुछ होता तो है नहीं, बस समय कि बर्बादी होती है।" मां बोली- "उठ जा बेटा तेरे पापा ने बड़ी मुश्किल से तेरे लिए यह नौकरी पता की है। तू नहीं जाएगा तो उन्हें बुरा लगेगा।" कुछ भी हलचल ना होने पर मां बोली- "तू जाने और तेरे पापा जाने, तुम्हारी जो मर्ज़ी हो वो करो, मुझे बीच में मत लाना।" कहकर मां कमरे से चली गईं।
               काफ़ी देर बाद अशोक नाश्ता करने पहुंचा, तो उसके पिता ने उसपर व्यंग कसा- "यह नवाब्जादे अब उठ रहे हैं।" अशोक बोला-" मम्मी नाश्ता कहां है जल्दी से दे दो।" पिता बीच में बोले-"कोई नाश्ता- वाष्ता नहीं है। यह कोई समय है नाश्ते का। दोपहर की दो बजी है, इस समय कौन नाश्ता करता है?!"
             मुंह बनाकर अशोक चुपचाप दोपहर का खाना खाने लगा। तभी उसके पिता ने एक और व्यंग बाण चलाया- "आज इंटरव्यू था ना तुम्हारा? फ़िर क्या हुआ उसका? इस बार भी नहीं गए! तुम्हे मालूम है कितनी मुश्किल से तुम्हारे लिए नौकरी पता की थी मैंने!" अशोक भोजन बीच में ही छोड़कर अपने कमरे में चला गया। उसके पिताजी उसकी मां की ओर देखने लगे। मां बोली- "मैं बात करती हूं उससे।"
              अब तक ४ बज चुके थे। मां ने धीरे से अशोक के कमरे का दरवाज़ा खोला तो पाया कि वो मोबाइल में वीडियो गेम खेल रहा है। मां उसके पास जाकर बैठी, प्यार से उसके सर पर हाथ फेरा और बोली- "बेटा क्या तुम्हें कोई समस्या है? क्या तुम कुछ और करना चाहते हो? जो भी तुम्हारे मन में है तुम मुझसे कह सकते हो। परन्तु, बार-बार छोटी-छोटी बातों से हिम्मत हार जाना उचित नहीं है। मुश्किल घड़ी हूं हमें मज़बूत बनाती है। हमें डटकर उनका सामना करना चाहिए। परन्तु, कोशिश करने से पहले ही हार मान लेना ठीक नहीं।"
             अशोक ने मोबाइल एक तरफ रखा, बोला- "मां आप तो श्रीकृष्ण की भक्त है ना! आप भी तो यही चाहती थीं ना कि आपको श्रीकृष्ण जैसा पुत्र मिले?" मां ने हांमी भर दी। वह पुनः बोला- "वे भी तो रंछोड दास थे ना! तो फिर आप मुझे क्यूं समझाती हो? उनकी मां ने तो उन्हें कभी नहीं समझाया! "मां हंसी और बोली- "तो तुम श्रीकृष्ण बनना चाहते हो? क्या तुम्हें उनके रनछोड़ दास बनने के पीछे की कथा मालूम है?" अशोक ने ना में सर हिलाया।
             मां बोली-"वाह बेटा जब तुम्हें उनके बारे में पता ही नहीं तो तुम उनसे अपनी तुलना क्यूं कर रहे हो? मैं तुम्हें बताती हूं उसके पीछे का रहस्य। जब उन्हें यह ज्ञात हुआ कि रुक्मिणी से विवाह करने हेतु उन्हें रुक्मिणी के भाई-बंधुओं से युद्ध करना होगा। तब वे युद्ध के मैदान से भाग खड़े हुए। इसीलिए नहीं कि उनमें युद्ध कौशल नहीं था। बल्कि इसीलिए क्यूंकि उन्हें रिश्तों की कीमत पता थी। अतः वे किसी की हत्या करके या खून की नदियां बहाकर रुक्मिणी से विवाह नहीं करना चाहते थे। अतः तुम्हें किसी के बारे में पूर्ण जानकारी लिए बिना कुछ भी सुनिश्चित नहीं करना चाहिए।" कहकर मां चाय बनाने चली गईं। 
             अतः अशोक को अब भली-भांति यह समझ आ गया था कि किसी के भी उदाहरण को ग़लत स्थान पर प्रयोग करने से स्वयं का ही नुकसान होता है। इसीलिए किसी का अनुसरण करने से पूर्व उसके बारे में पूर्ण जानकारी ले लेनी चाहिए।

~सोचिए, चिंतन कीजिए।
~राह दे कृष्ण,
~राधे‌‌ऽऽऽ कृष्ण।

~स्वाति शर्मा (भूमिका)

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4 Comments

Seema Priyadarshini sahay

11-Feb-2022 08:35 PM

बहुत सुंदर

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Swati Sharma

12-Feb-2022 01:00 PM

धन्यवाद

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Simran Bhagat

11-Feb-2022 03:49 PM

Nice one

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Swati Sharma

12-Feb-2022 01:00 PM

Thank you

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